Transcendence

कौन थे और कैसे थे, युगपुरुष श्री प्रमुख स्वामी महाराज.

युगपुरुष और महान संतविभूति प्रमुख स्वामी महाराज.


क्या आप 7 लाख से ज़्यादा पत्र पढ़ के उसके उत्तर दे सकते है, और वो भी उनके पत्र जिसके साथ आपका कोई नाता या रिश्ता न हो या फिर मिले भी न हो?


क्या आप 17,000 से ज़्यादा गाँवों और शहेरोमें विचरण कर सकते है?



क्या आप 2.5 लाख से ज़्यादा घरोमें मुलाकात या पधरामणि कर सकते है?


क्या आप लाखो-करोड़ो व्यक्तिओकी व्यक्तिगत मुलाकात कर के उनके व्यवहारिक, आर्थिक और सामाजिक प्रश्नों के समाधान कर सकते है?

क्या आप कल्पना कर सकते है की कोई व्यक्ति दुनियाभर में 1200 से ज़्यादा मंदिर बना सकता है जो श्रध्धा के प्रतिक सामान हो?

क्या आप सोच सकते है की कोई व्यक्ति 1000 से ज़्यादा सुशिक्षित नवयुवानो को दीक्षा देके साधू बना सकता है?

क्या कभी ऐसा हो सकता है?

ऐसा हुआ है.

हम बात कर रहे है एक ऐसे युगपुरुष की.

यह महान संतविभूति है...
BAPS (बोचासणवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामिनारायण) संस्था के पांचवे गुरु श्री प्रमुख स्वामी महाराज.

एक शांत, अह्मशून्य, सरल और सधुतासभर आध्यात्मिक व्यक्तित्व यानी प्रमुख स्वामी महाराज। हर पल दुसरो के लिए जीना और खुद को भूलकर परमात्मामय रहेना, उसका दूसरा नाम है, प्रमुख स्वामी महाराज।

भगवान स्वामिनारायणकी गुणातीत गुरुपरम्परा के इस पांचवे गुरूदेव और महान संत का जन्म 7 दिसंबर, 1921 को गुजरात में वडोदरा पास के चाणसद गाँव में हुआ था। उनके बालवय का नाम था – शान्तिलाल, और सचमुच, शांति ही उसके व्यक्तित्व का परिचय था। बाल्यकाल से ही हिमालय में जाकर आध्यात्मिक साधना करने की उनको लगनी लगी था।

किशोरावस्थामें भगवान श्री स्वामीनारायणकी आध्यात्मिक परम्पराके तीसरे गुरूदेव ब्रम्हस्वरूप शास्त्रीजी महाराज के पवित्र व्यक्तित्व से वे आकर्षित हुए। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद 18 साल की उम्र में उन्होंने शास्त्रीजी महाराज के चरणोमें जीवन समर्पित कर दीया। दीक्षा लेने के बाद सन 1940में वह नारायणस्वरूपदास स्वामी बने। जन्मजात विनम्रता, अहर्निश सेवा, साधुता और लोगों के कल्याण के निःस्वार्थ भावनाओं से वे सभी की प्रिय बनें। सन 1950 में केवल 28 साल की उम्रमें बीएपीएस स्वामीनारायण संस्थान के वे अध्यक्ष बन गए तब से वे प्रमुखस्वामी महाराज के लोकप्रिय नाम से लोकलाड़ीले बन गए।

सन 1971 में ब्रह्मस्वरुप योगीजी महाराज के उत्तराधिकारी के रूप में गुरूपद पर आये तब से अनगिनत लोगों की आध्यात्मिक प्रेरणामूर्ति बने और अनगिनत लोगोके जीवनमें आध्यात्मिक प्रेरणाएं सिंची।


'दूसरोकी भलाईमें हमारी ही भलाई है!' - इस जीवनसूत्र के साथ विभिन्न सामाजिक सेवाकार्यों में पूरा जीवन समर्पित करके वे अनगिनत लोगों के तारणहार बन गए। लोकसेवा करने के लिए वे 17,000 गांवों-नगरोंमें विचरण करते-घूमते रहे। अक्षरधाम जैसे जगविख्यात संस्कृतिधाम के अलावा, दुनियाभर में 1,200 से अधिक मंदिरों का सर्जन करके उन्होंने संस्कृति के चिरंतन स्मारक और लोकसेवाओं के धाम की स्थापना की।

भेदभावोंसे पर इस वात्सल्यमुर्ति संत ने बच्चों-युवाओं, वृद्धो, साक्षरो-अनपढ़ो, दलितो-आदिवासीओ और यहाँ तक की देश-विदेश के प्रधानों को भी समानता से चाहा है। आंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक-सामाजिक संस्थान बीएपीएस स्वामीनारायण संस्थानके सुत्रधार प्रमुख स्वामीजीने, कड़ी साधुता, पुरुषार्थ और निःस्वार्थ प्रेम के द्वारा एक विराट चरित्रनिष्ठ युवासमाज तैयार किया है और उसे रचनात्मक रास्ते की तरफ ले गए है। स्वामिश्री के विनम्र और परगजु प्रतिभा से प्रभावित होकर दुनिया के कई धर्मगुरुओं और आंतरराष्ट्रीय धुरंधरोने उन्हें एक महान संतविभूति के रूप में दिल से बिरदाया है। कई मुमुक्षुओं ने उनके साननिध्य में परमात्मा का दैवीय अनुभव किया है, उच्च आध्यात्मिक शिखर प्राप्त किया और कई कर रहे हैं....



इस संतविभूति का निर्वाण दिनांक 13 अगस्त 2016 को गुजरात के सारंगपुर में हुआ था...



तो आयिए इस 13 अगस्त को ऐसे महान युगपुरुष की पुण्य-तिथि पर इनको शत शत नमन करे...और प्रार्थना करे...

हे प्रमुख स्वामी महाराज.

आपने जो किया हे वह हम तो कर नहीं सकते लेकिन.

आपकी तरह हम धर्म निरपेक्ष रहेकर, दुसरे धर्म-जाति, आदि भेदभाव भूलकर बस हम भगवानको और आपको खुश कर सके.

आपको गुरु-दक्षिणा देनेकी हमारी हेसियत नहीं लेकिन जो कुछ भी हो सके वो समाज उपयोगी काम हम कर सके.

विश्व में शांति और भाईचारे का आपका सन्देश गाँव-गाँव और शहर-शहर में फेलाके आपकी भक्ति अदा कर सके.

और आपही की तरह भगवानकी अनन्य भक्ति कर के परमधाम (अक्षरधाम) पा सके ऐसी प्रार्थना स्वीकार करे.

धन्यवाद.

जय स्वामिनारायण.

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