Transcendence

स्वामिनारायण खिचड़ी/आचार्य खिचड़ी का इतिहास |

एक बार जूनागढ़ में उत्सव के दौरान आचार्य रघुवीरजी महाराज ने मूल अक्षरब्रह्म गुणातीतानन्द स्वामीजी को उनके रथ में बैठने के लिए अनुरोध किया | जब गुणातीतानन्द स्वामी उनके रथ में बैठे तो वहा झूल रहे कुछ फूल उनके शरीर को छुए, तो वो तुरंत बोले, मुझे जड़भरत याद आ गए | ( तात्पर्य : जब कोमल स्पर्श होता है तो वो बंधनकारी हो सकता है, तो त्याग और वैराग्य के प्रतिक ऐसे जड़भरत जी को गुणातीतानन्द स्वामीजीने याद किया )

गुणातीतानन्द स्वामीजी का ऐसा त्याग- वैराग्य को देखकर आचार्य महाराज ने उनसे कहा, ' अगर आप ऐसी स्थिति में रहते हो और छोटे से कोमल स्पर्श में भी इतने जाग्रत रहते हो, तो हमारा क्या होगा? " तब गुणातीतानन्द स्वामीजी ने कहा, ' आप ६ माह के लिए तीर्थवासी होकर जूनागढ़ पधारे ,तो आप की भी ऐसी स्थिति कर देंगे | '
कई वर्ष पश्चात आचार्य रघुवीरजी महाराज ने अपना आचार्यपद अपने उत्तराधिकारी को सौंपकर खुद जूनागढ़ गुणातीतानन्द स्वामीजीका सत्संग समागम करने के लिए पहुंचे |






गुणातीतानन्द स्वामी तो अखंड कथा वार्ता करते रहते थे | जूनागढ़ में तो दिन रात कथा वार्ता का अखाडा ही चलता था |


रघुवीरजी महाराज वहा तीर्थवासी होकर पहोचे थे , इसलिए उनके साथ कोई सेवक नहीं था | खाना भी वो खुद पकाते थे | अगर खाना बनाने में वक्त बर्बाद करे तो कथावार्ता का सुख गवाना पड़ता है, ऐसा सोचकर उन्होंने चावल, दाल, और सब शब्जिया एक साथ पकने के लिए रख देते | और वो कथा वार्ता सुनने चले जाते | जब वो वापिस आते तो खिचड़ी तैयार होती |

इसीलिए यह खिचड़ी को प्रथम " आचार्य खिचड़ी " के नाम से प्रसिद्धता मिली | और अब यह " स्वामिनारायण  खिचड़ी " के नाम से प्रसिद्ध है |



भगवान की भक्ति में विघ्न न आये और सरलता रहे, इसलिए सात्विक और सरल यह भोजन तैयार हुआ |
तो हम भी जब खिचड़ी ग्रहण करे, तब अपने मन को प्रभु में जोड़कर प्रसाद की तरह इसे ग्रहण करे और याद करे की जैसे रघुवीरजी महाराज , जो की स्वामीनारायण संप्रदाय में एक आचार्य थे, जिनका एक राजा जैसा सन्मान था, वो भी तीर्थवासी होकर प्रभु भजन में मग्न रहने के लिए और भोजन में समय न बिगड़े, इसके लिए जो प्रयत्न किया उसको भी याद करे |

Jai Swaminarayan

Comments

amazon

Popular Posts